:शहादत:
चल पड़े थे आँधियों को चीरकर ,
जान अपनी उस हथेली पर लिए |
मंजिलों को ध्येय जीवन का समझ ,
उस शिखर पर विजय पाने के लिए ||
आंधियां खुद राह से हटने लगी ,
हौसला पौरुष बुलंदी देखकर |
पर्वतों से राह उसने छीन ली ,
जीत का सेहरा उठाना सोचकर ||
नाव की पतवार खुद चलने लगी ,
नीर की अनजान धारे मोड़कर |
सागरों की हर लहर लिखने लगी ,
घाट पर अपनी कथा सर फोड़कर ||
महक एक अजान सी आने लगी ,
इस धरा का रुख बदलता मानकर |
हर तरफ चिंगारियां जलने लगीं ,
मत्त फौलादी इरादे जानकार ||
देश था सोया सुनहले स्वप्न में ,
जाग उठा देख शोषण का प्रहर |
राष्ट्र के भीतर नयी ज्वाला जगी ,
सिन्धु में जैसे की बड़वानल लहर ||
क्रांति सारे देश में सहसा उठी ,
हर हृदय में एक ही सी थी तपिश |
देश में पैदा हुए कितने भगत ,
कर्म से प्रारब्ध की रचने कशिश ||
लालिमा नभ में नयी सी छा गयी ,
सुबह की स्वर्णाभ किरणों से निखर |
सृष्टि मानो नमन करने आ गयी ,
शहादत की वीरता को देखकर ||
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