Tuesday, March 24, 2009

Sookhe Patte

सूखे पत्ते :

रस्ते हर पल चलते हैं

और सूखे पत्ते जलते हैं
एक शोले की बस ज़रूरत है

फ़िर बनती नई सी सूरत है

हमराही हर पल मिलते हैं

राहों के पत्ते जलते हैं
बादल भी आख़िर सीमित है

सीमा में पानी पीता है

काला हो बदरा बनता है

तो एक दिन वो भी गिरता है

विशाल बड़ा समंदर है

अगणित जीवन को समेटे है

तूफ़ान उसमे भी आते हैं

पर एक दिन वो भी रोता है
राहों में राही चलते हैं

पर सूखे पत्ते क्यूँ जलते हैं

वो पेड़ हरे होते होंगे

फल उनमे भी लगते होंगे
वो मौसम याद से आते हैं
आंसू के बदरा छाते हैं

क्यूँ गीष्म ऋतु ये आती है

और जीवन को बिखराती है
क्यूँ वृक्ष सूख से जाते हैं

ये मौसम क्यूँ तड़पाते हैं

क्यूँ चिंगारी शोला बनती है

आवाज़ हलक में रूकती है

क्यूँ कांच के बर्तन बनते हैं

क्यूँ टकराने पर टूटते हैं

फ़िर भी राहें क्यूँ चलती हैं
और सूखे पत्ते जलते हैं

क्यूँ बर्तन भर के गिरता है

क्यूँ हवा आग उकसाती है

क्यूँ पत्ते सूखे बनते हैं

और सूखे बनकर जलते हैं

टकरा चिंगारी बनती है

पत्तों में आग लगाती है

फ़िर भी एक टीस सी रहती है

मन में कहीं पीड़ा सहती है

पर समय नही यूँ रुकता है

और फ़िर भी रस्ते चलते हैं

ये सूखे पत्ते जलते हैं

ये सूखे पत्ते जलते हैं

Sunday, March 15, 2009

Aas...

आस

हर सवेरे सूर्य की स्वर्णाभ किरणों से निखर,
ऐसे की जैसे लालिमा नभ में गई सी हो बिखर
हो की जैसे हर वसंत में पुष्प की भीनी सुगंध,
और जैसे पूर्णिमा की चांदनी सी हो बिखर

ओस की बूंदों पर जो पहली किरण पड़ती हुई ,
बादलों के बीच से वो पुष्प सी हंसती हुई
झूठ में तारीफ़ के पुल बांधना आता नही,
पर क्या करें मुस्कान के कायल यहाँ हम भी सही

जानते हो क्यूँ चकोर बस चाँद ही देखा करे ,
क्योंकि उसे अपने और भँवरे में फर्क मालूम ही है
हर विहाग हर रोज़ उड़ नई डाल पर जाते तो हैं ,
पर रात को वो लौट कर वापस वहीं आते भी हैं

बादलों की काली घटा के पीछे छुपा सा नीर है ,
वो नीर धरती पर गिरे तो धरती महक जाती ही है
तेरी ये जुल्फों पे हजारों लोग यूँ मरते नही,
इस घटा से ज़िन्दगी की सेज महक जाती ही है

तुम अगर हो स्स्मने तो सूर्य भी मध्यम लगे ,
तुम चलो जो सामने तो हर नदी फीकी पड़े
हो मुझे इस ज़िन्दगी से कोई भी शिक्वह नही ,
गर तुम्हारी ज़िन्दगी में हमको कोई आँगन मिले

कोई अलग बेला का हमको इंतज़ार होगा नही ,
पर जब तुम्हारे पुष्प की हमको सुगंध मिलने लगे ,
और वो सुगंध इस ज़िन्दगी की श्वास में बसने लगे ,
वो ही दिवस इस ज़िन्दगी के अनमोल दिन बन जायेंगे

वो हँसी और वो सुगंध इस रूह में है बस गयी,
मन को मन्दिर मान तेरे मन में मेरे बस गयी
गर मिले तुम तो मैं बस प्रार्थना कर पाऊंगा ,
मिल गए तो छाँव देता वृक्ष मैं बन जाऊँगा