Sunday, September 14, 2014

Raahi

राही 


रस्ते गुज़र जाते हैं,
समय बीत जाता है।  
एक  साथी मिलता है,
दूजा बिछड़  जाता है।
कुछ साथी बनते हैं,
कुछ हमराही बन जाते हैं।
बस यादें ही तो हैं थोड़ी,
जो हमको साथ मिलाती हैं।
उन पुरानी तस्वीरों को,
जब भी हम देखा करते हैं,
एक रौनक सी चेहरे पर,
यूँ स्वयं ही आ जाती है।
कल देख रहा था यादों को,
जब देख रहा था राहों पर।
फिर यादों के पिटारे में,
बस एक याद को देख लिया।
एक वही समय जो अपना था,
जब हसीं ठिठोली करते थे।  
सबकी गलती पर हँसते थे, 
जब हम राहों पर चलते थे, 
और सबकी बातें करते थे।  
जब नादानी भी फितरत थी, 
और हर टुकड़े पर लड़ते थे। 
वो दिन गुज़र गए लेकिन, 
पर याद बड़े ही आते हैं।  
वो राहें गुज़र गयी लेकिन, 
पदचिंह अब भी बाकी हैं ।  
राहों में मिले वो राही थे ,  
जब साथ चले वो साथी थे।  
अब जाने राहें कहाँ मिलें,
वो यादें हैं हमराही हैं ॥