Friday, October 31, 2014

Humraahi

हमराही 


मिले तो हम यूँ ही थे ,
मै ना था ना तुम ही थे।  
फिर समा बंधने लगा ,
रस भी कुछ घुलने लगा।  

एक कदम तेरा बढ़ा, 
और एक कदम मेरा बढ़ा।  
फिर मै ना तू ही रह गए, 
हर एक से हम बन गए । 

यूँ चला सफर ऐसे, 
हमराही से हम बन गए । 
वो शाम की यूँ महफिलें ,
उन महफ़िलों की मस्तियाँ।  

यूँ किसी का छेड़ना, 
और किसी का डाँटना । 
सबकी वो बदमाशियां, 
और सबकी वो नादानियां। 

है बस गयी तस्वीर वो, 
अब दिल से है जाती नहीं । 
दो पल मे ही तो हम मिले ,
फिर दुनिया नयी सी बन गयी । 

है फक्र मुझको वक़्त पे ,
जब मिले तुम मुझको यूँ।  
है नयी दुनिया मिली, 
तुम दोस्तों के संग यूँ ॥ 



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Wednesday, October 22, 2014

Yaadein

यादें 

जाने क्यों सागर से सागर मिल जाते हैं, 
जाने क्यों पंछी दूर कहीं उड़  जाते हैं । 
नदिया का रुख हम मोड़ कभी न पाते हैं, 
सागर की लहरों को भी रोक न पाते हैं । 

ये समय की फितरत भी कुछ ऐसी सी ही है,
जाने कब हवा के झोंके सा उड़ जाता है।  
यूँ दूर हमें इतना वो लेकर के आया,
की बचपन की गलियां वो पीछे रख आया।  

अब याद बड़ी ही आती है उन लम्हों की,
कमरे के कोने में बैठे उन गलियों की। 
यूँ देख नहीं हमको कोई जब पाता है, 
थोड़े से आँसू हम भी बहा हे लेते हैं । 

छोटी सी कश्ती सा है ये जीवन मेरा,
तेरी गोदी में है हर पल मैंने खेला। 
हर पल याद आती है अब तेरी लोरी,  
जब रात के सन्नाटे में भी नींद नहीं आती। 

आज त्योहारों का है ये मौसम आया ,
और याद हज़ारों है ये संग लेकर आया।  
हैं साथी अपने जो हर कमी मिटाएंगे,
पर तेरे हाथों की खुशबू न हम पाएंगे । 

ये नज़रें बस हैं घडी पे हे है टिकी हुई, 
पर जाने क्यों वो लगती है कुछ रुकी हुई । 
ए समय तू रक मत फितरत अपनी दिखा हे दे, 
उड़ जा फुर्ती से मुझको गलियों से मिला हे दे ॥ 

Sunday, September 14, 2014

Raahi

राही 


रस्ते गुज़र जाते हैं,
समय बीत जाता है।  
एक  साथी मिलता है,
दूजा बिछड़  जाता है।
कुछ साथी बनते हैं,
कुछ हमराही बन जाते हैं।
बस यादें ही तो हैं थोड़ी,
जो हमको साथ मिलाती हैं।
उन पुरानी तस्वीरों को,
जब भी हम देखा करते हैं,
एक रौनक सी चेहरे पर,
यूँ स्वयं ही आ जाती है।
कल देख रहा था यादों को,
जब देख रहा था राहों पर।
फिर यादों के पिटारे में,
बस एक याद को देख लिया।
एक वही समय जो अपना था,
जब हसीं ठिठोली करते थे।  
सबकी गलती पर हँसते थे, 
जब हम राहों पर चलते थे, 
और सबकी बातें करते थे।  
जब नादानी भी फितरत थी, 
और हर टुकड़े पर लड़ते थे। 
वो दिन गुज़र गए लेकिन, 
पर याद बड़े ही आते हैं।  
वो राहें गुज़र गयी लेकिन, 
पदचिंह अब भी बाकी हैं ।  
राहों में मिले वो राही थे ,  
जब साथ चले वो साथी थे।  
अब जाने राहें कहाँ मिलें,
वो यादें हैं हमराही हैं ॥