Tuesday, May 12, 2009

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रह रहकर भी क्यूँ
मन मेरा हलचल करता है
एक बार नही दो बार नही
हर पल करता है

एक प्यारी सी मुस्कान
नयन में बस बैठी है
हो नेत्र बंद तो भी
वो ही दिखती रहती है

इस मन को मैं समझाने
में
नाकाम रहा हूँ
पर समझ आए
क्यूँ उसको दिल दे बैठा हूँ

वो वक्त
सोचकर
यादें ताज़ा हो जाती हैं
और दिल की लहरें
दूर कहीं पर खो जाती हैं

अभी नयन मन के
दरवाज़े पर बैठे हैं
और मन के मोती सोच उसे
आहें भरते हैं

वो पिछवाडे के कमरे में
हम भी जाते हैं
ये रात सुहानी देख चाँद को
मुस्काते हैं

अपनी हालत के ऊपर फ़िर कुछ
लिख लेते हैं
और दुनिया जब सोती है
हम भी रो लेते हैं

पर चंचल सी मुस्कान
हृदय में दिख जाती है
और स्वयं के आंसू भी
मोती से बन जाते हैं |