Saturday, December 20, 2008

janani

जननी

तेरे स्पर्श ने जगाया
नेत्र खोले तुझको पाया
तेरे आँचल के सहारे
अस्तित्व अपना है बनाया

डूब कर ममता में तेरी
संसार को मैं देख पाया
जान कर तेरे हृदय को
पग ज़मी पर रख सका था

तेरा सहारा जब मिला तब
मैं ज़मी पर चल सका था
आज मैं इतना हूँ सक्षम
कि हर कदम को जान पाया

पथ में मिला जब भी अँधेरा
तुमने से रोशन बनाया
थाम कर मेरी हथेली
हर मुश्किलों से लड़ना सिखाया

जब भी मैं पथ से हट रहा था
तुमने मुझे वापस बुलाया
और फ़िर चल संग मेरे
हर कठिन पल में जिताया

संसार तुझको मानता है
हर
शख्स अब ये जानता है
नदी झरने फूल पत्ते
स्वयं इश्वर मानता है

जिस हृदय में प्यास न हो
मात्रत्व का आभास न हो
निशचल है वो
मानव यहाँ
जो इस सत्य को दुतकारता हो

पाषाण में भी जान भर दे
और पिघल दे हर हृदय को
ऐसा मुझे आभास होता
जब हाथ तेरा साथ होता

ब्रह्माण कि हो शक्ति जैसे
बसी हो एक तन में
इश्वर ने ही हो दी समां
सारी दया तेरे हृदय में

तुम ही श्रेष्ठ तुम ही निष्ठां
तुम जगत कि हो प्रतिष्ठा
तेरे बिना तो इस जगत को
सोचना दुश्वार होगा

रात्रि कि चादर है ओढे
नेत्र जब सब मूँद लेते
तुम दिवस के उन लम्हों को
हम अंश पर कुर्बान करती

ब्रह्माण करता नमन तुमको
नमन सारे लोक करते
सर्वव्यापी सर्वगुनता
सारे ग्रह सब लोग कहते

जन्मदायिनी नमन है
तुमको हृदय से नमन है
तुमने मुझे जीवन दिया
हर एक क्षण हर पल दिया

जाने कहाँ किस चौक पर
जीवन का अन्तिम पग रखूं
इच्छा है की उस चौक तक
हर पल मैं तेरे संग रहूँ

तेरे आंचल की छाँव में

मैं जियूं और प्राण दूँ


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