जननी
तेरे स्पर्श ने जगाया
नेत्र खोले तुझको पाया
तेरे आँचल के सहारे
अस्तित्व अपना है बनाया
डूब कर ममता में तेरी
संसार को मैं देख पाया
जान कर तेरे हृदय को
पग ज़मी पर रख सका था
तेरा सहारा जब मिला तब
मैं ज़मी पर चल सका था
आज मैं इतना हूँ सक्षम
कि हर कदम को जान पाया
पथ में मिला जब भी अँधेरा
तुमने से रोशन बनाया
थाम कर मेरी हथेली
हर मुश्किलों से लड़ना सिखाया
जब भी मैं पथ से हट रहा था
तुमने मुझे वापस बुलाया
और फ़िर चल संग मेरे
हर कठिन पल में जिताया
संसार तुझको मानता है
हर शख्स अब ये जानता है
नदी झरने फूल पत्ते
स्वयं इश्वर मानता है
जिस हृदय में प्यास न हो
मात्रत्व का आभास न हो
निशचल है वो मानव यहाँ
जो इस सत्य को दुतकारता हो
पाषाण में भी जान भर दे
और पिघल दे हर हृदय को
ऐसा मुझे आभास होता
जब हाथ तेरा साथ होता
ब्रह्माण कि हो शक्ति जैसे
आ बसी हो एक तन में
इश्वर ने ही हो दी समां
सारी दया तेरे हृदय में
तुम ही श्रेष्ठ तुम ही निष्ठां
तुम जगत कि हो प्रतिष्ठा
तेरे बिना तो इस जगत को
सोचना दुश्वार होगा
रात्रि कि चादर है ओढे
नेत्र जब सब मूँद लेते
तुम दिवस के उन लम्हों को
हम अंश पर कुर्बान करती
ब्रह्माण करता नमन तुमको
नमन सारे लोक करते
सर्वव्यापी सर्वगुनता
सारे ग्रह सब लोग कहते
जन्मदायिनी नमन है
तुमको हृदय से नमन है
तुमने मुझे जीवन दिया
हर एक क्षण हर पल दिया
जाने कहाँ किस चौक पर
जीवन का अन्तिम पग रखूं
इच्छा है की उस चौक तक
हर पल मैं तेरे संग रहूँ
तेरे आंचल की छाँव में
मैं जियूं और प्राण दूँ
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तेरे स्पर्श ने जगाया
नेत्र खोले तुझको पाया
तेरे आँचल के सहारे
अस्तित्व अपना है बनाया
डूब कर ममता में तेरी
संसार को मैं देख पाया
जान कर तेरे हृदय को
पग ज़मी पर रख सका था
तेरा सहारा जब मिला तब
मैं ज़मी पर चल सका था
आज मैं इतना हूँ सक्षम
कि हर कदम को जान पाया
पथ में मिला जब भी अँधेरा
तुमने से रोशन बनाया
थाम कर मेरी हथेली
हर मुश्किलों से लड़ना सिखाया
जब भी मैं पथ से हट रहा था
तुमने मुझे वापस बुलाया
और फ़िर चल संग मेरे
हर कठिन पल में जिताया
संसार तुझको मानता है
हर शख्स अब ये जानता है
नदी झरने फूल पत्ते
स्वयं इश्वर मानता है
जिस हृदय में प्यास न हो
मात्रत्व का आभास न हो
निशचल है वो मानव यहाँ
जो इस सत्य को दुतकारता हो
पाषाण में भी जान भर दे
और पिघल दे हर हृदय को
ऐसा मुझे आभास होता
जब हाथ तेरा साथ होता
ब्रह्माण कि हो शक्ति जैसे
आ बसी हो एक तन में
इश्वर ने ही हो दी समां
सारी दया तेरे हृदय में
तुम ही श्रेष्ठ तुम ही निष्ठां
तुम जगत कि हो प्रतिष्ठा
तेरे बिना तो इस जगत को
सोचना दुश्वार होगा
रात्रि कि चादर है ओढे
नेत्र जब सब मूँद लेते
तुम दिवस के उन लम्हों को
हम अंश पर कुर्बान करती
ब्रह्माण करता नमन तुमको
नमन सारे लोक करते
सर्वव्यापी सर्वगुनता
सारे ग्रह सब लोग कहते
जन्मदायिनी नमन है
तुमको हृदय से नमन है
तुमने मुझे जीवन दिया
हर एक क्षण हर पल दिया
जाने कहाँ किस चौक पर
जीवन का अन्तिम पग रखूं
इच्छा है की उस चौक तक
हर पल मैं तेरे संग रहूँ
तेरे आंचल की छाँव में
मैं जियूं और प्राण दूँ
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10 comments:
amazin poem very very well written.....
achchhaa likhaa hai swaagat hai our bhi likhate rahen.
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
very nice dude...nice goin ...n whor these chithha ppl??????
जिस हृदय में प्यास न हो
मात्रत्व का आभास न हो
निशचल है वो मानव यहाँ
जो इस सत्य को दुतकारता हो
Khub likha hai aapne, Swagat.
सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है.
खूब लिखें,अच्छा लिखें
a great peice of work from an upcoming poet
its simply beautiful..........
its simply beautiful...........
mind blowing dude....th emost wonderful poem on this topic i've ever read...keep it up...god bless ya!!!
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