Wednesday, October 22, 2014

Yaadein

यादें 

जाने क्यों सागर से सागर मिल जाते हैं, 
जाने क्यों पंछी दूर कहीं उड़  जाते हैं । 
नदिया का रुख हम मोड़ कभी न पाते हैं, 
सागर की लहरों को भी रोक न पाते हैं । 

ये समय की फितरत भी कुछ ऐसी सी ही है,
जाने कब हवा के झोंके सा उड़ जाता है।  
यूँ दूर हमें इतना वो लेकर के आया,
की बचपन की गलियां वो पीछे रख आया।  

अब याद बड़ी ही आती है उन लम्हों की,
कमरे के कोने में बैठे उन गलियों की। 
यूँ देख नहीं हमको कोई जब पाता है, 
थोड़े से आँसू हम भी बहा हे लेते हैं । 

छोटी सी कश्ती सा है ये जीवन मेरा,
तेरी गोदी में है हर पल मैंने खेला। 
हर पल याद आती है अब तेरी लोरी,  
जब रात के सन्नाटे में भी नींद नहीं आती। 

आज त्योहारों का है ये मौसम आया ,
और याद हज़ारों है ये संग लेकर आया।  
हैं साथी अपने जो हर कमी मिटाएंगे,
पर तेरे हाथों की खुशबू न हम पाएंगे । 

ये नज़रें बस हैं घडी पे हे है टिकी हुई, 
पर जाने क्यों वो लगती है कुछ रुकी हुई । 
ए समय तू रक मत फितरत अपनी दिखा हे दे, 
उड़ जा फुर्ती से मुझको गलियों से मिला हे दे ॥