Tuesday, December 16, 2008

Anugoonj

अनुगूंज


आज दिल में हलचले सी हो रही हैं ,
दिल में कुछ संवेदनाएं जग रही हैं
मेरी कलम कागज़ पे यूँ ही चल रही हैं
जानता मै भी नही क्या लिख रही है

गुंजन सी दिल में फ़िर कहीं पर हो रही है
मन की बातों की कलम राहें बनी है
कागज़ को बस गंतव्य सोच अब चल पड़ी है
देखते क्या मंजिल पे गुंजन ख़त्म होगी

हर पल सुनहरे अक्षरों में लिखना था चाहता
सोच मेरी आसमा की ऊँचाई पर थी
एक छोटे फूल को उपवन था समझा
एक छोटा पल ही जीवन बन गया थे

इक सुनेहले स्वप्न को दिन में था देखा
पर अब सवेरा कुछ यहाँ जल्दी हुआ था
स्वप्न मेरा मजधार में ही छूट गया
और सुनहला स्वप्न आखी टूट गया

अब असर ज्यादा मुझे दीखता नही है
मजधार की कश्ती किनारे लग चुकी है
पर स्वप्न में एक फूल मेरे साथ भी था
उस पुष्प से मेरअ साथ शायद छूट गया

पर फ़िर भी नमन करता हूँ मैं उस वक्त को
जो मेरा वक्त पर हर पल सहायक बना है
और नमन करता हूँ मैं इस कलम को
जो अनुगूंज के इस मार्ग की दर्शक बनी है ....

5 comments:

Unknown said...

lovely poem.

Unknown said...

cho chweet ..... welldone n keep going......

Unknown said...

beautiful poem.....

Kaamil Nakhasi said...

very nice poem brother....had commented bfor also but i guess there was a connection failure...और अगर हिंदी मे सुनना है तो सुन...काफी अछि कविता है

Unknown said...

Auntieeee