यादें
दिन बदल जाते हैं,
रस्ते बदल जाते हैं ।
रस्तों में मिलने वाले,
राही बदल जाते हैं।
हम दूर निकल आते हैं,
वो दूर चले जाते हैं।
पर मन में हमारी यादों में.
लघु छाप सी दे जाते हैँ ।
हम भूल उन्हें ना पाते हैं,
वो भूल हमें ना पाते हैं।
ना भूलना कोई चाहता है,
मिलने को मन कर जाता है।
इस दुनिया के गलियारे मे,
ये राहें बड़ी ही छोटी हैं,
एक चौक से अलग निकलती हैं,
उस चौक पे आ मिल जाती हैं।
जो जूते साथ पहनते थे,
वो अब शायद ना पहनेंगे।
वो गलियों में मेहकमों में,
हम अब शायद ना भागेंगे।
वो गलियारे का शोर अभी भी,
कानों मे गूंजता है।
शायद अभी भी मिल जाए,
चल चलकर उधर देखते हैं।
चल छोड़ बड़प्पन की बातें,
बचपन में वापस चलते हैं।
उन गलियों मे मेहकमों में,
हम शोर मचाते चलते हैं।
चल छोड़ अभी इन राहों को,
वापस बचपन में चलते हैं ।
ए दोस्त मेरे आजा एक दिन ,
वापस उस चौक मे मिलते हैं
1 comment:
Good one
Post a Comment