Saturday, November 7, 2009

विडम्बना

इस हृदय के द्वार पर
बस एक पहरेदार है
दिन रात पहरा दे रहा
वो ही तो चोकीदार है

कुछ भाव दिल में हैं बने
कुछ शब्द दिल ने है सुने
कुछ अनकही सी गुफ्तगू
बस धड़कने दिल की सुने

यूँ दिल तो कोषागार है
रक्षा में पहरेदार है
पर वो नही बेईमान है
और ना ही वो भगवान् है

उसके भी दिल में धड़कने
और ज़िन्दगी में अड़चने
यूँ वो भी एक इंसान है
इस हृदय का इंसान है

मस्तिष्क उससे कह रहा
और हृदय उससे कह रहा
संसार का प्रत्येक प्राणी
हर उससे कह रहा

कुछ राय अपनी दे रहे
कुछ राय उससे ले रहे
और मकडियों के जाल जैसे
ज़िन्दगी को बुन रहे

है मध्य में रक्षक खड़ा
अगणित सी राहें दिख रही
ये मामला गंभीर सा होने लगा
और पहरेदार उसमे फँस रहा

प्रत्येक राहें भाव लेकर हैं खड़ी
सोच पाये की वो किसको चुने
किस राह को दुत्कार दे या त्याग दे
और किसको मानकर अपना कहे

ही वो कोई सूरमा सम्राट है
और ये तो हर हृदय की बात है
जब भी दिल में उठ रहा तूफ़ान है
विडम्बनाओं से घिरे अरमान हैं ||

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