Sunday, August 9, 2009

dosti

दोस्ती


शब्दों का कोई खेल नहीं
दिलों के मेल की माया है
निस्स्वार्थ निश्बैर हर खुशी
का नाम है बस
दोस्ती

ज़िन्दगी अगर तपस्या है
तो वरदान है ये दोस्ती
ज़िन्दगी अगर भगवान् है
तो वंदना है
दोस्ती

निस्स्वार्थ फूलों का खिलना
भंवरों के लिए है दोस्ती
और हवा का सरसराना
है धरा से
दोस्ती


बातों के तीरों से नहीं
दिल से है बनती दोस्ती
अवसान से और अंत तक
बस प्रेम ही है
दोस्ती


जो उपकार के आधीन हो
वो दोस्ती निष्प्राण है
जिसे उपकार से सरोकार नहीं
वो नींव है बस
दोस्ती

दो शब्द कागज़ पर लिखने से
जायर नहीं होती दोस्ती
कलम दवात कागज़ कभी
नहीं समेट सकते दोस्ती

कलम कवि की लिख रही
निस्स्वार्थ भाव बस लिख रही
इस भावना के पीछे छिपे
कुछ भाव ही हैं दोस्ती ||

3 comments:

sunshine said...

nice one...... :)
great piece of work.. n true to its meaning..

Deepak said...

really very nice....had u let it without rhyming scheme....it would have been awesome.....even with it..its no less than awesome..carry on the gr8 work :)

Nighthawk said...

true...in all senses....brilliant piece of work...